Monday, November 7, 2011

इग्नू में सिंधी भाषा एवं संस्कृति के लिए केंद्र

इग्नू में सिंधी भाषा एवं संस्कृति के लिए केंद्र


इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) की शैक्षणिक परिषद ने सिंधी भाषा और संस्कृति के संवर्द्धन के लिए मानव संसाध् ान विकास मंत्रालय, भारत सरकार, की सलाहों को ध्यान में रखकर विश्वविद्यालय में एक सिंधी भाषा एवं संस्कृति केंद्र स्थापित करने की अनुशंसा की है। यह कंेद्र इस शैक्षणिक वर्ष के बाद से काम करना शुरू कर देगा।

इस केंद्र का मुख्य उद्देश्य युवाओं, खासकर ऐसे युवा जो अपनी इस मातृभाषा से कट गए हैं, में सिंधी भाषा एवं संस्कृति को प्रोमोट करना है। उन्हें सिंधी साहित्यिक एवं सांस्कृतिक विरासत के प्रति जागरूक करना एव इस भाषा में प्रवीण बनाना है ताकि वे सिंध् ाी में लिख सकें और सिंधी से हिंदी/अंग्रेजी में अनुवाद कर सके। केंद्र ऐसी गोष्ठियों एवं बैठकों व कार्यशालाओं का भी आयोजन करेगा जो इस भाषा को प्रोत्साहित कर सके।

कुलपति प्रो. वी.एन. राजशेखरन पिल्लै ने कहा, ‘‘इग्नू की कार्य योजना में स्नातक डिग्री कार्यक्रम (बीडीपी) के हिस्से के तौर पर एक ऐसा फाउंडेशन कोर्स स्थापित तैयार करना एवं शुरू करना है जिसमें वाचिक भाषा, साहित्यिक भाषा, शब्द संरचना और व्याकरण (सिंधी जानने वाले छात्रों के लिए) जैसे विभिन्न संघटक शामिल हों। यह सिंधी नहीं जानने वाले छात्रों के लिए भी सिंधी में विभिन्न तरह के एप्रेसिएशनन कोर्स शुरू करने
की योजना बना रहा है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘बाद के चरण में इग्नू पी.जी. सर्टिफिकेट एवं डिप्लोमा कार्यक्रम व स्नातकोत्तर डिग्री कार्यक्रम विकसित करेगा और इसके बाद एम.फिल एवं पीएच.डी कार्यक्रम विकसित होंगे। यह हिंदी-सिंधी-हिंदी और अंग्रेजी-सिंधी-अंग्रेजी कोर्स भी लांच करेगा एवं बाद में सिंधी व अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओं के बीच भी ऐसे कोर्स लांच होंगे।’’

सिंधी भारत की प्रमुख साहित्यिक भाषाओं में शामिल है और से भारतीय संविधान की आठवीं सूची में जगह दी गई है। विभाजन के बाद सिंध से भारत आने वाले सिंधियों की सतत और न्यायोचित मांग के बाद इसे संविधान मे ं10 अप्रैल, 1967 को जगह दी गई। वक़्त बदलने के साथ ही इस समुदाय के लोग गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं दिल्ली में बस गए।

आधुनिक भारतीय भाषाओं मंे सिंधी ही एक ऐसी भाषा है जो किसी भी भारतीय राज्य की राजकीय भाषा नहीं है। सिंध प्रांत, जहां इस भाषा का पिछले 12 सौ वर्षों में विकास हुआ, 1947 में पाकिस्तान का हिस्सा बन गया। ऐसे में सिंधी भारत में राज्यविहीन भाषा बन गई। इसकी विरासत को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिए खास प्रयास किए जा रहे हैं। इसे ध्यान में रखकर भारत ने इसके विकास के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं। इस दिशा में 1994 में नेशनल काउंसिल फॉर प्रोमोशन ऑफ सिंधी लैंग्वेज का गठन किया गया।

उन राज्यों में सिंधी अकादमी स्थापित की गई है जहां सिंध् ाी भाषी लोग अच्छी तादाद में रहते हैं। सरकारी स्तर पर इन प्रयासों के बावजूद सिंधी भाषा एवं साहित्य का औपचारिक शिक्षा क्षेत्र में क्षरण जारी है। इस भाषा से शिक्षा देने वाले माध्यमिक स्कूलों की संख्या तेजी से घटती जा रही है। स्नातक स्तर पर इस भाषा में शिक्षा देने वाले कालेज भी चंद ही हैं, जो गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान एवं दिल्ली में हैं। मुंबई विश्वविद्यालय एवं महर्षि दयानंद सरस्वती विश्वविद्यालय, अजमेर, ही दो ऐसे विश्वविद्यालय हैं जहां छात्र सिंधी पढ़ सकते हैं और एम.ए. एवं पीएच.डी स्तर तक सिंधी साहित्य का अध्ययन कर सकते हैं। विभिन्न श्रेणियों के छात्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए फुल टाइम, पार्ट टाइम, दूर और ऑनलाइन कोर्स उपलब्ध होंगे।

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