Monday, January 4, 2010

कांधी कारुनि में

खेतनि एवज़ि घर,
छिति ते हलंदा हर ।


काठु नदारद वण ,
चौधर फाईबर ।


उडि॒रनि कीन पखी ,
शहर लगा॒या पर ।



कड॒हिं न भञंदी थकु ,
साणी नज़र नज़र ।


कांधी कारुनि में ,
पंधु न डि॒सिबा सर ।


पाप विया वधंदा ,
उन खां वधि मंदर ।


रिश्तनि में हो रसु ,
अजु॒ मंगल छंछर ।


आवाज़ उहे सागि॒या ,
ट्रां ट्रां कनि डे॒ड॒र ।


मुअलु मुअलु आ मनु ,
जिअरो तनु आ, पर ।


महिलनि में डि॒सिजनि,
माण्हुनि जा खंडहर ।


--------------नारी लछवाणी भोपाल फोन-0755 2641962

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